ध्याणी के माता-पिता/ भाई -भाभी , “कल्यौ” के लिए ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं।

मोबाइल: राजेंद्र रावत 9925264632 , देवेंद्र रावत 8439848892

पता : 7 कलर रेस्तरां, बौराड़ी, नई टिहरी-249001 | 7 हाई रॉक होटल ,बी-1 सेक्टर 3 वसंत विहार नई टिहरी-249001
ईमेल: order@kalyo.in | वेबसाइट : www.kalyo.in

स्मृतिं यदा ससुरे ध्याणीनी तु प्राप्नुयात् क्लेशमथापि वा। मैतिं प्रपद्यते शीघ्रं, विश्रामं सुखशान्तिदम्॥

मैते निजैः परिवारैः स्नेहेन च सुवात्सलम्। बाल्यक्रीडाभिरासक्तं, सुखं चित्ते प्रसीदति॥

निरागताः ससुरं ध्याणीन्यः न केवलं हस्तरिक्षकम्। कल्यः स्नेहमयी भूरि, मैतेन प्रेषिता सदा॥

तस्मिन कल्ये स्नेहः शुद्धः, आशीर्वादः परम्परः। न केवलं सुसंस्कारं, धर्मयोगः प्रतिष्ठितः॥

ध्याणीन्यः प्रमुदिताः सन्ति, मैते स्मितं विहारिणः। परम्परा पुष्पिता भूयात्, परितोषः कुटुम्बकः॥

किंतु कालस्य गत्याऽद्य, गढ़वालस्य ग्रामतः। पलायनं नवयौवनं, परम्पराः विस्मृतं यथा॥

न ध्याणीन्यः प्राप्नुयुः मैतिं, न मैतिः स्नेहविभ्रमम्। न च त्योहारकाले ताः, प्रेष्यन्ते कल्यकं शुभम्॥

दूरी यत्र वर्धते, स्नेहबन्धो विलीयते। समृद्धं सुन्दरं यत् तत्, परम्परा लुप्ततामियात्॥

अर्थात

जब भी किसी ध्याणी को अपने ससुराल में कोई परेशानी होती थी या अपने मैती की याद सताती थी, वह तुरंत अपने मैत चली जाती थी। वहां, अपने परिवार और बचपन के माहौल में कुछ समय आराम और सुकून बिताने के बाद, वह अपने ससुराल लौटती थी।

लेकिन खाली हाथ नहीं, बल्कि अपने मैती द्वारा प्रेमपूर्वक तैयार किया गया कल्यौ लेकर। यह कल्यौ न केवल उसकी ससुराल में उसके लिए विशेष होता, बल्कि पूरे गांव में इसे आदरपूर्वक वितरित किया जाता था।

इस प्रक्रिया में केवल उपहार नहीं, बल्कि मैती का स्नेह, आशीर्वाद और परंपरा का अमूल्य हिस्सा उसके साथ जाता था।

ध्याणी की खुशी ही मैती के चेहरे की मुस्कान बनती थी। लेकिन समय के साथ, खासकर गढ़वाल के टिहरी, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली और पौड़ी जिलों से युवा पीढ़ी के पलायन के कारण, यह परंपरा धुंधली होने लगी।

ध्याणियां अब न तो अपने मैत आसानी से जा पाती हैं और न ही उनके मैती त्योहारों और विशेष अवसरों पर उन्हें कल्यौ भेजने में सक्षम होते हैं।

इस दूरी ने न केवल ध्याणियों को अपने मैती की भावनात्मक सुरक्षा से दूर कर दिया है, बल्कि मैती भी उनकी तकलीफों से अनजान रहने लगे हैं। इस दूरी के बढ़ने से एक समृद्ध और खूबसूरत परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है।

विरासत का अगला चरण

इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए रावत हॉस्पिटैलिटी की, नई टिहरी में स्थित 7 कलर रेस्टोरेंट ने एक नई पहल की शुरुआत की है। यह रेस्टोरेंट अब गढ़वाल के टिहरी, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली और पौड़ी जिलों में रहने वाली ध्याणियों तक उनके मैती की ओर से कल्यौ पहुंचाने की सेवा प्रदान करेगा।

शुरुआती चरण में, गांव की महिलाओं द्वारा बनाए गए पारंपरिक कल्यौ में गढ़वाली व्यंजन जैसे ऐरसा, स्वांला पकोड़ा, और हलवा शामिल होंगे।

इन व्यंजनों को परंपरागत टोकरी में सजा कर ध्याणी के घर आदर और सम्मान के साथ पहुंचाया जाएगा।

साथ ही, मैती अपनी परंपराओं और पसंद के अनुसार कल्यौ में बदलाव भी कर सकते हैं, ताकि यह उनकी भावनाओं और रीति-रिवाजों का सच्चा प्रतीक बन सके।

इस पहल का उद्देश्य केवल कल्यौ पहुंचाना नहीं है, बल्कि ध्याणियों और मैतियों के बीच खोते जा रहे रिश्तों को फिर से जोड़ना और गढ़वाल की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखना है।

रावत हॉस्पिटैलिटी
गढ़वाल की परंपरा को सहेजने की पहल

7 कलर रेस्टोरेंट, रावत हॉस्पिटैलिटी की एक बहुराष्ट्रीय रेस्तरां श्रृंखला है, जो उत्तराखंड और गुजरात में अपनी विशेष पहचान बनाए हुए है। इसकी स्थापना सुरेंद्र सिंह रावत ने की थी, जो अपने ग्राहकों को शुद्ध और पारंपरिक भारतीय व्यंजन परोसने के लिए समर्पित हैं।

सुरेंद्र सिंह रावत की जड़ें उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं। इसलिए, उनका भावनात्मक लगाव उत्तराखंड की बेटियों और उनकी समृद्ध परंपराओं से स्वाभाविक है। इसी लगाव को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने “कल्यौ” की परंपरा को पुनर्जीवित करने की घोषणा की है।

कल्यौ उत्तराखंड की बेटियों और उनके मैत (मायके) के बीच एक विशेष संबंध का प्रतीक है, जो राज्य से बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन के कारण विलुप्त होने की कगार पर है।
“कल्यौ” केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक गहरी भावनात्मक धरोहर है, जो गढ़वाल और कुमाऊं की सांस्कृतिक आत्मा को संजोए हुए है।

7 कलर रेस्टोरेंट के माध्यम से इस परंपरा को जीवंत रखना सुरेंद्र सिंह रावत का प्रयास है, ताकि उत्तराखंड की बेटियां और उनके परिवार इस सांस्कृतिक धरोहर को अपनी अगली पीढ़ियों तक पहुंचा सकें।

हमारे बारे में

हमारी गढ़वाली संस्कृति की खूबसूरत परंपरा, जो ध्याणी और मैती के बीच गहरे स्नेह और अपनापन को दर्शाती है, अब रावत हॉस्पिटालिटी के माध्यम से फिर से जीवंत की जा रही है।

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